सेक्टर-8 में YEIDA प्राधिकरण द्वारा ज़मीन का अधिग्रहण जिस तेज़ी और तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है, उसने दस्तम्पुर और रन्हेरा गाँव के सैकड़ों किसानों के जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर दिया है। यहाँ की उपजाऊ कृषि भूमि वर्षों से न केवल किसानों की आजीविका का मुख्य साधन रही है, बल्कि पीढ़ियों से यह भूमि उनकी पहचान, सुरक्षा और भविष्य की नींव रही है। इसी ज़मीन के सहारे किसान अपने परिवार, बच्चों की शिक्षा और रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करते आए हैं। लेकिन अब प्राधिकरण इन्हीं ज़मीनों को मात्र 3808 रुपये प्रति वर्गमीटर के मुआवज़े के साथ 7% प्लॉट देकर, और बिना प्लॉट के 4300 रुपये प्रति वर्गमीटर तय कर अधिग्रहित कर रहा है—जो किसानों के अनुसार बिल्कुल अन्यायपूर्ण है।
किसानों का आरोप है कि प्राधिकरण द्वारा लगातार दबाव बनाया जा रहा है। उन्हें यह कहकर डराया जा रहा है कि यदि अभी फाइल नहीं लगाई तो भविष्य में न प्लॉट मिलेगा, न मुआवज़े में कोई राहत। इस डर और मानसिक दबाव के चलते कई किसान मजबूरी में अपनी फाइलें जमा कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि यह सिर्फ कागज़ों पर हस्ताक्षर नहीं है, बल्कि यह उनकी बेबसी और टूटे विश्वास की निशानी है। फाइलों पर लगी मुहरों में उनकी दशकों पुरानी खेती और ज़मीन से जुड़ी भावनाएँ दबी हुई हैं।
सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब YEIDA ने सेक्टर-8 के लिए एक बड़ी सेल्स कंपनी को लगभग 200 एकड़ भूमि आवंटित कर दी। किसानों का कहना है कि उनकी ज़मीन की रजिस्ट्री तो जल्दी-जल्दी कर ली गई, लेकिन खेतों में लगी फसल अभी भी खड़ी थी—वह फसल जिसे बोने में किसानों ने न सिर्फ मेहनत की, बल्कि खाद, बीज, पानी और समय का भरपूर निवेश किया था। इसके बावजूद कंपनी के कर्मचारी खेतों में घुसकर "कार्यालय निर्माण" के नाम पर फसल को नष्ट कर रहे हैं। कई किसानों ने बताया कि वे अपनी फसल को बचाने के लिए खेतों में खड़े होकर विरोध करते हैं, लेकिन कंपनी प्रतिनिधि उनकी एक नहीं सुनते। यह व्यवहार किसानों की मेहनत और भावनाओं पर ठेस पहुँचाने जैसा है।
कंपनी द्वारा खेतों में लाल झंडी लगाकर की जा रही मार्किंग ने किसानों की नाराज़गी को और बढ़ा दिया है। किसान साफ़ कहते हैं कि YEIDA केवल अपनी अधिग्रहीत ज़मीन का आवंटन कर सकता है, लेकिन निजी ज़मीन पर किसी कंपनी को मार्किंग करने या घुसपैठ का अधिकार नहीं है। यह सीधा-सीधा किसानों की निजी संपत्ति पर अतिक्रमण है। कई ग्रामीणों का कहना है कि जब तक पूरा मुआवज़ा नहीं मिल जाता और सभी कानूनी प्रक्रियाएँ पूरी नहीं हो जातीं, तब तक किसी भी कंपनी को खेत में कदम रखने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
आँकड़ों के अनुसार YEIDA किसानों से 3808 रुपये प्रति वर्गमीटर में ज़मीन लेकर उसे कंपनियों को लगभग 9530 रुपये प्रति वर्गमीटर में बेच रहा है। यह लगभग दोगुने से भी अधिक का अंतर किसानों को बेहद पीड़ादायक लगता है। उन्हें लगता है कि उनकी मजबूरी और अज्ञानता का फायदा उठाकर प्राधिकरण और कंपनियाँ भारी लाभ कमा रही हैं, जबकि उन्हें उनके हक़ का उचित मूल्य भी नहीं मिल रहा। वहीं स्थानीय विधायक श्री धीरेंद्र सिंह द्वारा इस पूरी प्रक्रिया का समर्थन करना किसानों के आक्रोश को और बढ़ाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निरीक्षण के दौरान दिए गए बयान का वीडियो भी चर्चाओं में है, जिसमें कहा गया कि किसानों को 4300 रुपये प्रति वर्गमीटर मुआवज़ा दिया गया है। किसान इस दावे को आधा सच बताते हुए आरोप लगाते हैं कि विधायक जी मुख्यमंत्री को वास्तविक स्थिति से अवगत ही नहीं करा रहे।
आज इस क्षेत्र की मार्केट वैल्यू इतनी बढ़ चुकी है कि एक बीघा (843 वर्गमीटर) ज़मीन छोड़ने के बाद भी किसान 100 वर्गमीटर प्लॉट खरीदने में सक्षम नहीं है। ऐसी स्थिति में किसान सवाल पूछते हैं—क्या यह अधिग्रहण वाकई किसानों के हित में है? या फिर यह केवल बड़े उद्योगपतियों और निवेशकों को फायदा पहुँचाने की नीति है? किसानों को उनकी ही जमीन पर बनने वाली कंपनियों में ठेकेदार, मजदूर या अस्थायी कर्मचारी बनने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जो अत्यंत अपमानजनक और अन्यायपूर्ण है।
यदि YEIDA सच में किसानों के हित में काम करना चाहता, तो उसे चाहिए था कि वह किसानों को भी उद्योग लगाने का मौका देता। आधुनिक स्टार्टअप योजनाओं के साथ किसानों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान की जाती, ताकि वे अपनी ही भूमि पर भागीदारी के साथ विकास कर सकें और मालिकाना हक़ बनाए रख सकें। लेकिन इसके उलट, कुछ कंपनियों को विशाल भूखंड देकर यहाँ व्यवसायिक एकाधिकार का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे किसानों के अवसर और अधिकार दोनों सीमित हो जाते हैं।
किसानों का दर्द तब और बढ़ जाता है जब वे बताते हैं कि रजिस्ट्री के बाद भी उन्हें सिर्फ खेत की ज़मीन का मुआवज़ा मिला है, लेकिन खेतों में लगे पेड़, बागान, बोरिंग, ट्यूबवेल, पाइपलाइन, मोटर, बिजली कनेक्शन और सिंचाई व्यवस्थाओं का मुआवज़ा अब तक नहीं दिया गया है। खेती की इन संपत्तियों को तैयार करने में किसानों ने वर्षों लगाए थे, लेकिन अधिग्रहण के दौरान इन्हें शून्य मूल्य मान लिया गया। इसके बाद कंपनी द्वारा ज़मीन पर कब्ज़ा कर फसल नष्ट करना किसानों के लिए दोहरा अन्याय है।
किसान मांग कर रहे हैं कि किसी भी निर्माण कार्य की शुरुआत तभी की जाए जब:
किसानों को पूरा, पारदर्शी और न्यायपूर्ण मुआवज़ा दिया जा चुका हो।
ज़मीन से जुड़ी सभी संपत्तियों का उचित मूल्यांकन कर मुआवज़ा प्रदान किया जाए।
किसानों को विकास प्रक्रिया में सम्मानजनक भूमिका और हिस्सेदारी दी जाए।
कंपनियों द्वारा खेतों में अनधिकृत घुसपैठ और मार्किंग पर तुरंत रोक लगाई जाए।
किसानों का कहना है कि विकास का विरोध उनका उद्देश्य नहीं है, बल्कि वे अपने अधिकारों, भविष्य और सम्मान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार और प्राधिकरण उन्हें प्रतिद्वंदी नहीं, बल्कि साझेदार की तरह देखें। विकास तभी सार्थक है जब उसमें जनता की भागीदारी, न्याय और पारदर्शिता हो—वरना यह विकास नहीं, बल्कि विस्थापन बन जाता है।
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